दोस्तों स्वागत करते हैं आपका हमारे आज के एक नए article में जिसका title है Ras ke prakar? 2023 रस पहचानने का सबसे अच्छा तरीका |
आज के post के जरिए आपको hindi mein ras kitne prakar ke hote hain से लेकर ras ki paribhasha aur uske prakar, रस के अंग आदि सभी बातें बताई जाएगी | यदि हिंदी विषय में आपको विशेष रूचि रहता है तो आपको हिंदी के ग्रामर के बारे में पता होना चाहिए, रस हिंदी ग्रामर का एक सदस्य होता है |
यदि आप स्कूल या कॉलेज में पढ़ने वाले student है तो आज का हमारा यह post Ras ke prakar आपका काफी मदद करने वाला है, क्योंकि हम इस article में रस के प्रकार तथा रस के भाव आदि को विस्तार से तथा सही ढंग से बताने वाले हैं |
हम अपनी पूरी कोशिश आज के article तैयार करने में लगा दिए हैं ताकि ras ke naam या रस के विषय से संबंधित कोई भी छोटी से छोटी बातें आप तक अछूती ना रहे |
दोस्तों कोइ भी सवाल आप के मन मंदिर में बाकी ना रहे जैसे रस के प्रकार कितने होते हैं, प्रत्येक रस के भाव क्या होते हैं, रस के प्रमुख चार तत्व क्या है आदि |
दोस्तों जो लोग government jobs की तैयारी करते हैं या हिंदी साहित्य विषय लेकर पड़ते हैं उनको Ras ke prakar क्या है आदि सभी बातें अच्छे से पता होनी चाहिए |
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आज हम रस से संबंधित सभी बातों पर चर्चा करेंगे | दोस्तों इस article को आप जरूर पढ़ें जिससे आपको सभी बातें अच्छे से समझ में आ सके | तो आइए जानते हैं Ras ke prakar या रस के कितने प्रकार होते हैं तथा ras ke kitne bhed hote hainआदि के बारे में विस्तार से |
ras ki paribhasha aur uske prakar? रस की परिभाषा लिखिए? What is Ras
दोस्तों क्या आप जानते हैं कि ras ki paribhasha aur uske prakar? या रस का परिभाषा क्या होता है? रस का अर्थ भाव से होता है दोस्तों जिसे अंग्रेजी भाषा में feelings कहते हैं |
यह भाव अनेक प्रकार के हो सकते हैं, जैसे आनंद, खुशी, गुस्सा, गम, प्यार सभी भाव ही होते हैं और इसे ही रस कहा जाता है | उदाहरण से अगर समझे तो, जैसे किसी वस्तु का हमें चाह रहे और वह हमें मिल जाता है तो हमारे मन मंदिर में आनंद या खुशी का भाव उत्पन्न होता है यही भाव ही रस होता है |
यदि हम ras ki paribhasha aur uske prakar इस को परिभाषित रूप में देखें तो वह कुछ इस प्रकार होगा, किसी भी काव्य, घटना, दृश्य, रचना, नाटक आदि को देखने, सुनने या पढ़ने से जो मन में भाव उत्पन्न होता है या आनंद की उत्पत्ति होती है उसे ही रस का नाम दिया जाता है |
एक और उदाहरण के जरिए समझने की कोशिश करते हैं, जैसे- ‘जब देखा जाकर इतिहास हमारा.. मेरे दिल में उठा एक शोला है.. मैं कैसे चुप रहूं, मुझे दुश्मनों की कह कर लेना है.. जिसने मेरे देश को लूटा था, उनकी छाती चीर, लहू पी लेना है।।’ तो दोस्तों इस पंक्ति को जब हम पढ़ते हैं तो हमें एक वीरता या उत्साह भाव मन में उत्पन्न होता है यही भाव ही रस कहलाता है | दोस्तों भाव भी अलग-अलग होती हैं इसी वजह से रस भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं |
किसी भी काव्य रचना, नाटक आदि में रस बहुत मायने रखता है यही कारण है कि दोस्तों रस को काव्य की आत्मा या प्राण तत्व माना जाता है क्योंकि जिस काव्य रचना को पढ़ने और सुनने से हमें किसी भी प्रकार के भाव या रस का अनुभव नहीं होती है तो वह काव्य रचना बेजान मृत जैसा प्रतीत होता है |
दोस्तों ऐसा कहा गया है कि रस का संबंध ‘सृ’ धातु से है जिसका अर्थ जो बहता है | जैसे भाव रूप का हृदय में बहना | इस प्रकार दोस्तों आपको पता चल गया होगा की ras ki paribhasha aur uske prakar रस की परिभाषा क्या होती है | आइए ras aur uske sthayi bhav व रस के बारे में और भी कुछ बातें जानते हैं |
ras ke kitne bhed hote hain? रस के तत्व? Ras ke kitne ang hai?
दोस्तों Ras ke prakar को जानने से पहले हमें यह जानना जरूरी है कि ras ki paribhasha aur uske prakar या रस के कितने तत्व होते हैं ras ke kitne bhed hote hain | क्या आपको पता है कि ras ke kitne bhed hote hain |
आइए दोस्तों देखते हैं दरअसल रस के चार तत्व होते हैं जो सहयोग करते हैं रस के निष्पत्ति या उत्पत्ति में अर्थात् हम कह सकते हैं कि रस के चारों अंग के बगैर ras kitne prakar ke hote hain का अध्ययन अधूरा है |
बात करें चारों तत्वों या अंगों की तो वह है स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव | इन्हीं चारों अंगों से ही रस को उसकी पहचान मिलती है | आइए दोस्तों जानते हैं इन चारों रस के अंगों के बारे में विस्तार से फिर हम बात करेंगे ras ke prakar ki paribhasha आदि के बारे में |
स्थायी भाव:-
दोस्तों ras ke sthayi bhav रस सर्वप्रथम अंग होता है | स्थायी भाव से तात्पर्य है ऐसे भाव से जो मन मंदिर में सदा विद्यमान रहता है | क्योंकि भाव शब्द की उत्पत्ति ‘भ’धातु से हुई है, जिसका अर्थ होता है विद्यमान रहना अतः ऐसे भाव जो मन मंदिर में सदा विद्यमान रहते हैं उसे स्थायी भाव कहते हैं |
दोस्तों समानत: स्थायी भाव के अंग को 9 माना गया है, रति, हास, शोक, उत्साह, क्रोध,भय, घृणा, आश्चर्य, वैराग्य | दोस्तों स्थायी भाव के यह सभी भाव ऐसे भाव होते हैं जो मन मंदिर में सदा विद्यमान रहते हैं जो की परिस्थिति के अनुसार आते रहते हैं | इसी वजह से इसे स्थायी भाव के नाम से जाना जाता है |
दोस्तों वर्तमान समय में स्थायी भाव की संख्या को 9 से 11 कर दी गई है दो और स्थायी भाव वात्सल और अनुराग भाव होते हैं | उम्मीद हैं आपको ras ke prakar udaharan sahit समझ आ रहा होगा |
विभाव:-
दोस्तों विभाव का अर्थ होता है कारण या निर्धारक | जिन कारणों से मन में स्थायी भाव प्रकट होते हैं ऐसे कारणों को विभाव कहते हैं | यदि हमारे मन में कुछ भाव प्रकट हो रहे हो तो उन भावों को प्रकट करने वाले कारण को विभाव कहते हैं | उदाहरण सांप को देखकर डर जाना, यहां पर भाव है डरना, कारण है सांप को देखना |
दोस्तों विभाव के दो प्रकार होते हैं-
आलंबन विभाव-
स्थायी भाव जिन वस्तुओं या व्यक्तियों आदि के माध्यम या सहारे से स्वयं को उत्पन्न या प्रकट करता हो उसे आलंबन विभाव कहते हैं |
आलंबन विभाव भी दो प्रकार के होते हैं,
विषय आलंबन-
जिसके कारण भाव उत्पन्न हो उसे विषय आलंबन कहते हैं तथा
आश्रय आलंबन-
जिसके मन मंदिर में भाव उत्पन्न हो उसे आश्रय आलंबन कहते हैं | उदाहरण- आपको देखकर मुझे खुशी होती है इस उदाहरण में खुशी है स्थायी भाव मुझे है आश्रय अलंबन तथा आपको है विषय आलंबन |
उद्दीपन विभाव-
किसी परिस्थिति, व्यक्ति, वस्तु को देखकर मन में स्थायी भाव का उत्पन्न होना उद्दीपन विभाव कहलाता है या स्थायी भाव को प्रकट रखने में सहायक कारण उद्दीपन विभव कहलाता है | उदाहरण- सुंदर स्थान को देख कर खुशी हो ना, यहां सुंदर स्थान है उद्दीपन विभाव |
उद्दीपन विभाव के भी दो प्रकार होते हैं,
विषयगत या आलंबन गत-
आलंबन की चेष्टाएं और उक्तियां तथा
बर्हि गत या बाह्य गत-
वातावरण से जुड़ी हुई वस्तुएं या संबंधित चीजें |
अनुभाव:-
दोस्तों स्थायी भाव को जब हमारे द्वारा शारीरिक रूप से प्रकट किया जाता है या दिखाया जाता है तो उसे हम अनुभाव कहते हैं अर्थात् मन के स्थायी भाव को दिखाने वाली शारीरिक चेष्टाएं अनुभाव कहलाती हैं | उदाहरण- दुखी में रोना यहां दुखी स्थायी भाव है और रोना अनुभाव है |
दोस्तों अनुभाव भी दो प्रकार के होते हैं,
सात्विक अनुभाव-
यह भाव स्वयं प्रकट होते हैं इसकी संख्या आठ होती है तथा
कायिक अनुभाव-
मन में स्थित भाव शरीर के द्वारा जानबूझकर किए जाने वाले चेष्टाएं कयिक भाव होती है | उदाहरण- गुस्से में हाथ उठाना आदि |
संचारी भाव:-
दोस्तों संचारी भाव ऐसे भाव होते हैं जिनका कोई स्थिर या स्थाई काम नहीं होता है | यह भाव रस का अंतिम अंग होता है | हृदय में प्रकट होने वाले जो अस्थायी मनोभाव होते हैं उसे ही संचारी भाव कहा जाता है |
दोस्तों संचारी भाव की संख्या को 33 माना जाता है | मन में आने जाने वाले क्षणिक भाव को ही संचारी भाव कहते हैं, जैसे- चिंता, मोह, लज्जा, मद, आलस्य, गर्व आदि संचारी भाव होते हैं | तो इस प्रकार हमने जाना कि रस के अंग कितने होते हैं या रस के अवयव क्या होते हैं | आइए दोस्तों अब जानते हैं कि ras ke prakar kitne hote hain और कौन-कौन से होते हैं |
रस के प्रकार? Ras ke prakar ? ras kitne prakar ke hote hain
दोस्तों हम यह तो जान गए हैं कि रस क्या होता है | क्या आप जानते हैं कि ras ke naam क्या है या ras kitne prakar ke hote hain नहीं तो आइए जानते हैं कि रस के प्रकार क्या होते हैं |
दोस्तों वर्तमान समय में रस के प्रकार 11 होते हैं जो निम्न प्रकार से हैं- श्रृंगार रस, हास्य रस, करुण रस, रौद्र रस, वीर रस, भयानक रस, विभत्स रस, अद्भुत रस, शांत रस व भक्ति रस |
श्रृंगार रस:-
दोस्तों श्रृंगार रस को रसों का राजा रसराज व रसपति कहा जाता है | जब किसी काव्य रचना में किसी नायक व नायिका की सुंदरता तथा प्रेम संबंध आदि का वर्णन किया जाता है तो उसे श्रृंगार रस कहा जाता है |
दोस्तों श्रृंगार रस का स्थायी भाव अर्थात् इस रस में जो भाव होता है वह है रति भाव | दोस्तों श्रृंगार रस के प्रमुख दो अंग होते हैं,
संयोग श्रृंगार रस-
जिस काव्य रचना में नायक नायिका के प्रेम में मधुर मिलन या संयोग या प्रकृति की सुंदरता का वर्णन किया जाता है वह संयोग श्रृंगार रस होता है तथा
वियोग श्रृंगार रस-
जिस काव्य रचना में नायक नायिका के समागम ना हो पाए अर्थात उनके प्रेम में वियोग का वर्णन किया गया हो उसे वियोग श्रृंगार रस कहते हैं | आसा है की आपको ras ke prakar ki paribhasha समझ मे आरहा होगा
हास्य रस:-
जब किसी काव्य रचना, व्यक्ति, वस्तु, घटना आदि को देखने सुनने पढ़ने से मन में जो हास भाव उत्पन्न होता है उसे हास्य रस कहते हैं | हास्य रस का स्थायी भाव हास होता है | उदाहरण- हास्य काव्य रचना, हास्य नाटक आदि |
करुण रस:-
जब किसी प्रिय व्यक्ति या वस्तु के नष्ट हो जाने पर या चीर विरह व मरण पर जो शोक का भाव मन में उत्पन्न होता है उसे करुण रस करते हैं |
करुण रस को भवभूति द्वारा रसराज कहा गया है | दोस्तों जब किसी अपने का वियोग एवं प्रेमी से सदा के लिए बिछड़ जाने पर मन में शोक भाव आता है तो उसे ही करुण रस कहते हैं |
रौद्र रस:-
जब अवांछित या अनुचित स्थिति तथा उनके कारण किसी व्यक्ति या वस्तु को देख कर मन में उत्पन्न होने वाली क्रोध को रौद्र रस कहते हैं | इसका स्थायी भाव होता है क्रोध | रौद्र रस में अनेक भाव उत्पन्न होते हैं जैसे मुखलाल होना, दांत पीसना आदि | उम्मदी है आपको हमारी post ras ke prakar kitne hote hain समझ मे आ रही होगी |
वीर रस:-
जब किसी काव्य रचना, नाटक, घटना आदि को देखने सुनने वह पढ़ने से मन में जो उत्साह व वीरता का भाव उत्पन्न होता है उसे वीर रस कहते हैं | वीर रस का स्थायी भाव होता है उत्साह या वीरता | उदाहरण- मर जाएंगे पर गलत के आगे सिर नहीं झुकाएंगे आदि |
भयानक रस:-
दोस्तों भयानक रस से यह बात आसानी से समझ में आ जाती है कि इसका स्थायी भाव क्या होगा | भयानक रस का स्थायी भाव है भय | जब किसी डरावने दृश्य, चित्र, घटनाओं या काव्य रचनाओं को देखने सुनने पढ़ने से जो डर का भाव मन में उत्पन्न होता है उसे भयानक रस कहा जाता है | इसके अंतर्गत अनेक भाव जैसे- पसीना छूटना, डरना, कांपना, मुंह सूखना, आदि उत्पन्न होते हैं |
वीभत्स रस:-
दोस्तों विभत्स रस का स्थायी भाव घृणा होता है | जब किसी व्यक्ति या वस्तु को देख कर मन मंदिर में घृणा का भावना उठने लगे तो उसे वीभत्स रस करते हैं | इसके प्रमुख अवयव है- स्थाई भाव घृणा, आलंबन विभाव दुर्गंध वाली वस्तु आदि, उद्दीपन विभाव रक्त, मांस का सड़ना आदि | अनुभाव नाक को टेढ़ा करना, मुंह बनाना आदि | उम्मीद है आपको ras ke prakar ki paribhasha समझ मे आरहा होगा |
अद्भुत रस:-
अद्भुत रस उसे कहते हैं जब किसी विचित्र और आश्चर्यजनक वस्तु को देखकर हमारे मन मंदिर में एक आश्चर्य का भाव उत्पन्न होता है या प्रकट होता है |
दोस्तों इस रस का स्थायी भाव आश्चर्य या विस्मय होता है | अद्भुत रस में आपके मन में अनेक भाव जैसे कांपना, आंसू आना, रोमांच, आंखें फाड़ कर देखना आदि भाव होते हैं | उम्मीद है आपको ras ke prakar udaharan sahit समझ मे आ रहा होगा |
शांत रस:-
दोस्तों शांत रस शांति के प्रतीक होता है | जब किसी काव्य रचना आदि को देखने सुनने पढ़ने से जो मन में शांत का भाव उत्पन्न होता है उसे शांत रस खाते हैं | शांत रस का स्थायी भाव शांत या निर्वेद होता है | शांत रस को 9वां रस माना जाता है | जब मन सांसारिक चीजों से मुक्त हो जाता है अर्थात् वैराग्य हो जाता है तो ऐसे मनोस्थिति में उत्पन्न रस को शांत रस कहते हैं |
वात्सल्य रस:-
दोस्तों वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सल होता है | जब माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति प्रेम, गुरुजनों का अपने शिष्यों के प्रति प्रेम, बड़ों का छोटू के प्रति प्रेम भाव मन में आता है तो इस भाव को ही वात्सल्य रस करते हैं | इसके अवयव है – आलंबन विभाव पुत्र, शिशु आदि | उद्दीपन विभाव तुतलाना, हठ करना आदि | अनुभाव थपथपाना, प्यार से सिर पर हाथ फेरना आदि |
भक्ति रस:-
दोस्तों भक्ति रस का स्थायी भाव भगवत विषयक रति या अनुराग होता है | इस रस में ईश्वर की पूजा या अनुराग का वर्णन किया जाता है अर्थात् ईश्वर के प्रति श्रद्धा और भक्ति का वर्णन किया जाता है | इसका अवयव है – आलंबन विभाव रामकृष्ण आदि | उद्दीपन विभाव ईश्वर के क्रियाकलाप | अनुभाव ईश्वर के लीलाओं का गुणगान करना | इस प्रकार दोस्तों आज हमने जाना कि ras ka sthayi bhav या ras ke prakar ki paribhasha क्या है | आइए कुछ और भी बातें जानते हैं ras ke naam के बारे में |
रस पहचान कैसे करें? Ras ka pahchan kaise kre?
दोस्तों रस को पहचानना कोई कठिन काम नहीं होता है | बस आपको ras ki paribhasha aur uske prakar व Ras ke prakar के बारे में अच्छे से पता होना चाहिए, तभी आप रस के पहचान को बता सकते हैं |
रस एक भाव होता है जब किसी काव्य रचना घटना आदि को पढ़ने देखने से आपके मन में भाव उत्पन्न होता है वही रस होता है | यदि किसी घटना को देखकर आपके मन में शोक की भावना उत्पन्न हो रही है तो वहां पर करुण रस होता है |
इसी प्रकार अन्य घटनाओं के उनके अन्य भाव आपके मन में आते हैं | रस को पहचानने के लिए आपको ras kitne prakar ke hote hain आदि से जुड़ी बातें पता होनी चाहिए | रस को पहचानने के लिए आपके मन में उठ रही भाव को आप को समझना होता है |
आलंबन के अंगों के नाम कितने हैं? Alamban ke prakar?
दोस्तों आलंबन, विभाव का एक प्रकार होता है जिसका अर्थ होता है स्थाई भाव का किसी वस्तु आदि के माध्यम से स्वयं को प्रकट करना | आलंबन विभाव के अंगों के नाम दो होते हैं- पहला
विषय आलंबन-
जिसके कारण भाव की उत्पत्ति मन में होती है | दूसरा
आश्रय आलंबन-
जिसके मन में भाव की उत्पत्ति होती है | उदाहरण- उसे देखकर मुझे रोना आया, इस उदाहरण में रोना भाव है, मुझे आश्रय आलंबन है तथा उसे विषय आलंबन है |
ras ka sthayi bhav? ras aur uske sthayi bhav?
दोस्तों अभी तक हमने यह जान लिया है कि ras ke naam या ras kitne prakar ke hote hain | क्या आपको पता है कि ras ka sthayi bhav कितने होते है | दरअसल स्थायी भाव वर्तमान समय में 11 प्रकार के होते हैं | रति, शोक, हास, उत्साह, भय, क्रोध, आश्चर्य, निर्वेद, वत्सल और अनुराग | यह थी दोस्तों जानकारी ras ke prakar kitne hote hain या ras ke naam, ras ke kitne bhed hote hain आदि के बारे में |
Conclusion
दोस्तों आज के हमारे post मे हमने जाना की ras ke prakar udaharan sahit, ras ke naam, ras ke prakar ki praibhasha या ras ka sthayi bhav, इसके साथ ही साथ हमने जाना कि ras ke prakar kitne hote hain आदि |
दोस्तों हमारी कोशिश यही रहती है कि आपको हमारे post के जरिए सही जानकारी मिलती रहे | यदि आपको हमारा आज का यह post Ras ke prakar? ras aur uske sthayi bhav article पसंद आया होगा तो हमारे इस पोस्ट hindi mein ras kitne prakar ke hote hain को अपने social media platforms में share जरूर करें |
यदि कोई भी सवाल आज के पोस्ट ras kitne prakar ke hote hain से जुड़ी आपके मन में आ रही होगी तो उसे आप नीचे comment box में जरुर लिखे, हम आपके सवालों का जवाब जरूर देंगे | मिलते हैं दोस्तों अगले article के साथ | हमारा आज के post ras ki paribhasha aur uske prakar, ras ke prakar ki paribhasha को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद दोस्तों |
IMPORTANT FAQS
ras kitne prakar ke hote hain
दोस्तों वर्तमान समय में रस के 11 प्रकार होते हैं श्रृंगार रस हास्य रस करुण रस रौद्र रस वीर रस भयानक रस वात्सल्य रस विभत्स रस शांत रस अद्भुत रस और भक्ति रस |
करुण रस का उदाहरण क्या है?
जिस काव्य रचना नाटक आदि को देखने सुनने से शोक भाव उत्पन्न हो वह करुण रस होता हैं | उदाहरण- कृष्ण के वियोग में बहाती अपनी अश्रु मिरा |
ras ke kitne bhed hote hain?
रस के चार अंग होते हैं स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव, संचारी भाव |
महाभारत में कौन सा रस है?
दोस्तों महाभारत का प्रधान रस शांत रस है इसमें श्रृंगार, हास्य, वीर, करुण, रौद्र आदि सभी रसों का विधान हुआं है| अद्भुत व वीर रस प्रमुख रस है |
अनुभाव के भेद कितने हैं?
अनुभाव के प्रमुख दो भेद होते हैं कायिक व सात्विक अनुभाव |
विभाव किसे कहते हैं?
मन में स्थायी भाव को प्रकट करने वाले कारण को विभाव कहते हैं | ऐसे कारण विभाव होते हैं जो हमारे मन में स्थायी भाव को प्रकट करता है |